उत्तर प्रदेश की राजनीति में बहुजन समाज पार्टी एक प्रमुख राजनीतिक दल है और इसका अपना बड़ा वोट बैंक है ।
उत्तर प्रदेश में बसपा की कई बार सरकार रह चुकी है ।
2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा का प्रदर्शन काफी निराशाजनक रहा था और पार्टी एक भी सीट जीत नहीं पाई थी, कारण ये रहा कि मोदी लहर में बसपा दलित और मुस्लिम के साथ पिछड़ा वर्ग के वोटों को अपने साथ नहीं खींच सकी थी ।
पार्टी सुप्रीमों मायावती अब 2014 के चुनाव को भूलकर विधानसभा के चुनाव में अपना पूरा ध्यान लगा दिया है ।
बसपा के लिए निश्चित तौर पर यह चुनाव आसान नहीं होने वाला है और उसको भाजपा और सपा से कड़ी टक्कर मिलने वाली है ।
नरेंद्र मोदी की जनसभाओं को देखकर ऐसा लगता है कि नरेंद्र मोदी का जादू अब भी उत्तर प्रदेश में लोगों के सर चढ़कर बोल रहा है ।
दूसरी तरफ समाजवादी परिवार में ड्रामें के बाद अखिलेश की छवि एक ऐसे नेता के तौर पर उभरी है जो विकास की बात कर रहा हैं और पार्टी में गुण्डागर्दी और गलत करने वालों के खिलाफ है ।
मायावती की मुश्किल सिर्फ इतनी भर ही नहीं है पार्टी के कुछ पुराने वफादार भी बगावती हो चुके हैं जो बसपा का बड़ा नुकसान कर सकते हैं ।
बसपा से बगावत करने वाले नेताओं में स्वामी प्रसाद मौर्य और आरके चौधरी हैं जिनका पिछड़े वर्ग के वोटरों पर खासा प्रभाव हैं वहीं ब्रजेश पाठक के जाने से भी बसपा को नुकसान हो सकता है ।
बसपा से निकलने वाले तमाम नेताओं नें मायावती पर पैसे लेकर टिकट बांटने और काशीराम के मिशन से भटकने का आरोप लगाया ।
हालाँकि बसपा मुस्लिम और सवर्ण वोटरों को रिझाने के लिए चाल चल रही है और जो टिकटों के बंटवारे में साफ दिख रहा है ।
लेकिन भाजपा के रहते सवर्ण और सपा के रहते मुस्लिम वोटरों को खींचना बसपा के लिए आसान नहीं होगा । प्रमुख नेताओं के बागी होने के बाद बसपा में कितना दम है ये तो चुनाव बाद ही पता लग पाएगा ।