By Jiopost.com
Lucknow: मतलब के लिए नेता इस तरह बदल जाते हैं, यूपी चुनाव में जिन दीवारों पर ’27 साल यूपी बेहाल’ का नारा लिखा गया था अब उन पर पुताई हो रही है, वह भी काले रंग से। सपा-कांग्रेस गठबंधन की वजह से ऐसा हुआ है। इस चुनाव में कांग्रेस का एकमात्र आधिकारिक नारा यही था, जिसे मजबूरी में मिटाया जा रहा है। यूपी में विधानसभा चुनाव प्रचार का यह तरीका चर्चा का विषय बना हुआ है।
दिल्ली से लेकर गोरखपुर तक यूपी के हर शहर और कस्बे की दिखने वाली दीवारों पर लिखे गए इस नारे को कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने तैयार किया था। नारा काफी चर्चित भी हो गया था। यूपी में जगह-जगह दीवारों पर इस नारे की लीपापोती हो रही है! कांग्रेस के नारे लिखी दीवारों पर काले रंग से पुताई की जा रही है, जो राजनीतिक अवसरवाद की सबसे बड़ी निशानी है!
सपा-कांग्रेस गठबंधन से पहले भाजपा और बसपा कांग्रेस पर यही सवाल उठा रहे थे कि ये दोनों पार्टियां मिलीं तो यूपी की बेहाली वाले नारे का क्या होगा? जानकारों का कहना है कि सत्ता संग्राम के इतिहास में लोगों ने इस तरह का नजारा पहली बार देखा है कि किसी पार्टी ने कैसे हित साधने के लिए अपने ही नारे को दीवारों से मिटाना शुरू किया हो। परन्तु दिलचस्प बात यह है कि जो लोग पहले ध्यान नहीं देते थे वह भी अब इन दीवारों की ओर बरबस ही देख रहे हैं। ‘यूपी को ये साथ पसंद है, अब कांग्रेस-सपा का यह संयुक्त नारा है।
बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य का कहना है है कि यूपी को कांग्रेस-सपा का नहीं बल्कि बीजेपी का साथ पसंद है। कांग्रेस की ये है मजबूरी यूपी में 15 बार कांग्रेस का सीएम रहा है। 1988 में आखिरी बार नारायण दत्त तिवारी की अगुवाई में सत्ता मिली थी। 5 दिसंबर 1989 को नारायण दत्त तिवारी ने मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ी थी। इसके बाद कांग्रेस कभी यूपी की सत्ता में वापसी नहीं कर पाई। इसके बाद सपा, बीजेपी और बसपा ने शासन किया। चार-चार बार समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने शासन किया। इसलिए यूपी में गठबंधन के बाद कांग्रेस को 27 साल यूपी बेहाल का नारा कायम रखना संभव नहीं था। नतीजतन कांग्रेस को अपने ही बनाये नारे लिखे दीवारों पर कालिख पोतनी पड़ी, और बैनर-पोस्टर को भी हटाना पड़ा।