नई दिल्ली: बुद्धवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने मौजूदा ऋण गारंटी योजना में संशोधन को मंजूरी दे दी है. इसके तहत सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा माइक्रो फाइनेंस कंपनियों, सार्वजनिक बैंकों, आवास वित्त कंपनियों और गैर बैकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा एक वर्ष तक की परिपक्वता अवधि वाले उच्च रेटिंग तथा बिना रेटिंग वाले साख पत्र खरीदने पर पहली दफा होने वाले 20 प्रतिशत तक के नुकसान की भरपाई की गांरटी की व्यवस्था की गई है.
पूलित परिसंपत्तियों की ख़रीद प्रक्रिया में भी कुछ संशोधन किए हैं.
इस योजना के दायरे में वे गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (एमएफसी)/आवास वित्त कंपनियां(एचएफसी)आएंगी, जो 01 अगस्त, 2018 से पहले की एक वर्ष की अवधि के दौरान संभवत: ‘SMA1’ श्रेणी में शामिल हैं. इससे पहले ‘SMA2’ श्रेणी में शामिल कंपनियां भी इसके दायरे में रखी गई थीं.
गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों/आवास वित्त कंपनियों के शुद्ध लाभ के मानकों में भी बदलाव किया गया है. अब योजना के दायरें में ऐसी कंपनियां आएंगी जिन्होंने वित्त वर्ष 2017- 18 2018- 19 और 2019- 20 में किसी तरह का लाभ नहीं कमाया हो.
परिसंपत्तियों के शुरु होने की तारीख को लेकर भी संशोधनो के तहत कुछ रियायतें दी गई हैं. ये रियायत उन परिसंपत्तियों के मामले में होंगी जो इनीशियल पूल रेटिंग के कमसे कम छह महीने पहले अस्तित्व में आई हों. इसके पहले 31 मार्च 2019 तक अस्तित्व में आई परिसंपत्तियों को ही ऐसी रियायत देने का प्रावधान था. पूल परिसंपत्तियों की खरीद योजना की अवधि को 30 जून 2020 से बढाकर 31 मार्च 2021 तक कर दिया गया है.
मौजूदा आंशिक ऋण गांरटी योजना के तहत वित्तीय दृष्टि से मज़बूत एनबीएफसी की कुल एक लाख करोड़ रुपये मूल्य की उच्च रेटिंग वाली संयोजित परिसंपत्तियों की खरीद के लिये सरकार द्वारा 10 प्रतिशत तक के प्रथम नुकसान के लिये सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को एकबारगी 6 माह की आंशिक ऋण गारंटी देने की व्यवस्था है.
कोविड के कारण हुए लॉकडाउन की वजह से इन कंपनियों का व्यवसाय बुरी तरह से प्रभावित हुआ है. अर्थव्यवस्था में अहम भूमिका अदा करने वाली इन वित्तीय कंपनियों को ऐसे समय में सहारे की जरुरत है इसलिए सरकार ने आशिंक ऋण गांरटी योजना में संशोधन को मंजूरी दी है.
कोविड के कारण गैर बैकिंग वित्तीय कंपनियों और एचएफसी की परिसंपत्तियों की साख बुरी तरह प्रभावित हुई है. इससे ऋण कारोबार भी मंद हुआ है. इसकी सबसे ज्यादा मार सूक्ष्म,लघु और मझौले उद्योगों पर पडी है जो इन कपंनियों से कर्ज लेते हैं.