उप चुनाव: योगी-केशव की प्रतिष्ठा दांव पर

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केशव प्रसाद मौर्य और योगी आदित्यनाथ (फ़ाइल फोटो)

नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश की सबसे हाईप्रोफाइल लोकसभा सीटों गोरखपुर और फूलपुर के उप चुनावों के लिए बिगुल बज चुका है. चुनाव आयोग ने गोरखपुर और फूलपुर उपचुनाव के लिए तारीखों का ऐलान कर दिया है. यहाँ 11 मार्च को चुनाव होगा और 14 मार्च को रिजल्ट आएगा. दोनों सीटें बीजेपी के लिए नाक का सवाल हैं.

गोरखपुर की सीट पर योगी आदित्यनाथ की अग्निपरीक्षा
उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने से पहले योगी आदित्यनाथ की कर्मभूमि गोरखपुर ही रहा है. इस सीट पर वे 1998 से लगातार सांसद रहे हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में उन्होंने लगातार पांचवीं बार जीत दर्ज की थी.

योगी आदित्यनाथ, मुख्यमंत्री, यूपी

गोरखपुर सीट बीजेपी और योगी आदित्यनाथ के लिए सबसे बड़ी चुनौती है क्योंकि यह सीट सीएम योगी की प्रतिष्ठा का सवाल है, इस सीट पर हार योगी की साख पर बट्टा लगाने वाली सकती है. इस सीट के परिणाम को योगी सरकार के 10 माह के कामकाज के रिजल्ट के रूप में भी देखा जायेगा.

योगी आदित्यनाथ , मुख्यमंत्री, उप्र.

गोरखपुर की यह सीट योगी और बीजेपी के लिए इसलिए और भी खास हो जाती है क्योंकि पिछले 29 साल से गोरखपुर सीट पर लगातार गोरक्षपीठ का दबदबा रहा है. यह सीट गोरखपुर के प्रतिष्ठित के गोरखनाथ मन्दिर से भी जोड़कर देखी जाती है जहाँ के मौजूदा महंत भी योगी आदित्यनाथ हैं.

योगी आदित्यनाथ,मुख्यमंत्री,उत्तर प्रदेश

साल 1989 में योगी आदित्यनाथ के गुरु और पीठ के तत्कालीन महंत अवैद्यनाथ ने हिंदू महासभा के टिकट पर चुनाव लड़कर जीत दर्ज की थी. 1991 और 1996 के चुनाव में अवैद्यनाथ ने बीजेपी के टिकट से जीत हासिल की थी.

ऐसा नहीं है कि ये सिलसिला महंत अवैद्यनाथ के दौर से शुरू हुआ है. 1967 से 1970 के बीच महंत दिग्विजय नाथ गोरखपुर से निर्दलीय सांसद थे. फिर 1998 से लगातार इस सीट पर बीजेपी के टिकट पर योगी आदित्यनाथ काबिज हैं. इसलिए बीजेपी यहाँ अपना पूरा जोर लगा देने के मूड में है.

फूलपुर सीट पर केशव प्रसाद मौर्य की प्रतिष्ठा दांव पर
उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के लिए फूलपुर सीट जीतना उनकी प्रतिष्ठा का सवाल है. इस सीट का इतिहास अपने आप में बेहद खास है. देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू समेत कई बड़े दिग्गजों ने इस सीट से लोकसभा में नेतृत्व किया और कई दिग्गजों को यहाँ से हार का मुह भी देखना पड़ा.

साल 1952,1957 और 1962 में भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इस सीट का प्रतिनिधत्व किया था. फूलपुर कांग्रेस के वर्चस्व वाली सीट मानी जाती थी लेकिन लोकसभा चुनाव में लगभग 5 लाख से भी ज्यादा वोटों से जीत हासिल कर केशव प्रसाद मौर्य ने पहली बार फूलपुर सीट पर कमल खिलाया था.

केशव प्रसाद मौर्य, उपमुख्यमंत्री, यूपी

साल 1962 में नेहरू को टक्कर देने के लिए प्रख्यात समाजवादी नेता डॉ. राम मनोहर लोहिया उतरे, लेकिन करीब 55 हजार वोटों से हार गए. सिर्फ लोहिया ही नहीं साल 1996 के लोकसभा चुनावों में बीएसपी के संस्थापक कांशीराम भी इस सीट से हार चुके हैं.

केशव प्रसाद मौर्य और बीजेपी के लिए यह सीट इसलिए ख़ास हो जाती है क्योंकि इसी सीट पर भारी जीत दर्ज करने के बाद केशव को बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी मिली. प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद केशव प्रसाद यूपी की राजनीति के सबसे बड़े चेहरों में शुमार हो गए.

केशव प्रसाद मौर्य, उपमुख्यमंत्री, यूपी

केशव नें बीजेपी के साथ पिछड़े वर्ग के लोगों को जोड़ा और  बीजेपी को यूपी विधानसभा चुनाव में अबतक की सबसे बड़ी जीत दिलाई. विधानसभा चुनाव में गैर यादव पिछड़ों के सबसे बड़े नेता के तौर पर उभरे केशव का नाम मुख्यमंत्री पद की रेस में भी था लेकिन उनको उप मुख्यमंत्री के पद से ही संतोष करना पड़ा.

केशव प्रसाद मौर्य , उपमुख्यमंत्री ,यूपी

पहली बार हाथ आई इस ऐतिहासिक सीट को जाहिर तौर पर बीजेपी और केशव दोनों अपने हाथ से जाने देना नहीं चाहेंगे.
पिछले दिनों मीडिया में आई मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री के बीच मतभेद की ख़बरें अगर सही हैं तो केशव भी इस सीट को जीतने का हर संभव प्रयास करने की कोशिश करेंगे क्योंकि वो यह कभी नहीं चाहेंगे कि किसी को उन पर सवाल उठाने का मौका मिले.

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