नई दिल्ली: हरियाणा कैडर के आईएएस अफसर प्रदीप कासनी का 34 साल की नौकरी में 71 बार ट्रांसफर किया गया. कासनी के रिटायरमेंट से पहले उनकी तनख्वाह भी रोक ली गई. सभी सरकारों ने प्रदीप कासनी को ‘प्रताड़ित’ किया और ‘भ्रष्ट सिस्टम’ के साथ ना चलने की बार-बार ‘सजा’ दी.
प्रदीप कासनी ने हरियाणा में इनेलो, कांग्रेस, बीजेपी और अन्य कई सरकारों के साथ काम किया लेकिन सभी नें उनके साथ एक तरह का ही व्यवहार किया. कासनी का दावा है कि शायद ही कोई और आईएएस हो जिसने जीवन में इतने तबादले देखे हों लेकिन इस आईएएस अधिकारी को न्याय दिलाने के लिए आईएएस एसोसिएशन कभी नहीं खड़ा हुआ.
आम आदमी पार्टी विधायकों और दिल्ली के मुख्य सचिव अंशु प्रकाश के साथ मारपीट की घटना के बाद अधिकारीयों द्वारा जिस तरह काम-काज ठप्प कर दिया गया है इससे पहले भारतीय इतिहास में ऐसा देखने को नहीं मिला था. मुख्यमंत्री या मंत्री स्तर पर ऐसे सैकड़ों मामले सामने आये पर अधिकारीयों के संगठनों को कभी गुस्सा नहीं आया, दिल्ली की तरह न्याय की लड़ाई कहीं नहीं लड़ी गई.
आईएएस दुर्गा शक्ति नागपाल का मामला आपको याद ही होगा, अमिताभ ठाकुर को फोन पर धमकी दिए जाने को भी आप शायद ही भूले होंगे. जब मायावती मुख्यमंत्री थीं तो एक आईएएस उनको जूते पहनाता हुआ नजर आया था. जब अखिलेश यादव मुख्यमंत्री थे तब मंच पर एक आईपीएस उनके पैरों में बैठा हुआ दिखाई दिया था. इन मामलों पर अधिकारियों के संगठनों नें चुप रहना ही बेहतर समझा. किसी को न तो ‘शर्म’ आई ना ही उनके ‘सम्मान’ पर कोई ठेस पहुची.
हरियाणा के आईएएस अधिकारी अशोक खेमका के तबादलों के बारे में सबको पता है फिर भी अधिकारियों के संगठनों को कभी उनके तबादलों का विरोध करते हुए नहीं देखा गया.

‘अच्छे दिन’ लाने का दावा करने वाली बीजेपी की हरियाणा सरकार ने आईएएस अफसर प्रदीप कासनी के साथ बहुत ‘बुरा’ किया. नौकरी से रिटायरमेंट लेने की कगार पर खड़े कासनी का आखिरी तबादला 22 अगस्त 2017 को लैंड यूज़ बोर्ड में कर दिया. ये एक ऐसा विभाग था जिसका कोई अस्तित्व ही नहीं था. विभाग को सालों पहले बंद किया जा चुका था. सैलरी भी नहीं मिल रही थी.
मीडिया को दिए एक इन्टरव्यू में प्रदीप कासनी ने बताया कि ‘यह बोर्ड 2004 में ही खत्म हो गया था. हरियाणा सरकार ने इस बोर्ड को एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट में पुनर्गठित कर दिया था लेकिन इसको भी 2009 में फाइनली खत्म कर दिया गया था.’
कासनी ने इस इन्टरव्यू में कहा है कि जो अधिकारी यह ठान लेता है कि उसे गलत नहीं करना है, सैलरी पर गुजारा करना है, उसे किसी भी सरकार में परेशान होना पड़ता है. प्रदीप कासनी का मानना है कि सभी सरकारें कमोबेश एक जैसी ही होती हैं.
कासनी ने कहा 71वां ट्रांसफर है सबसे यादगार
मीडिया को दिए इंटरव्यू में उन्होंने अपने 71वें ट्रांसफर के बारे में बात करते हुए कहा कि ‘आप पसंद नहीं है तो सरकार आप को सबसे बेकार जगह पर लगा सकती है. लेकिन यह तो जगह ही नहीं थी. इसलिए इसमें सैलरी भी नहीं मिली थी. पर सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल ने हरियाणा सरकार को डायरेक्शन दी कि इन्हें तुरंत तनख्वाह दो, फिर चीफ सेक्रेटरी इस्टैब्लिशमेंट से वेतन निकाला गया.’

प्रदीप कासनी ने इस इंटरव्यू में यह माना है कि यह सरकार की शरारत थी, क्योंकि जहां ट्रांसफर होता है वहां जाकर चार्ज ले कर बैठना होता है, काम करना होता है. कासनी के अनुसार सरकार उनको अब तक यह नहीं बता पाई कि वो कहां जाएं, क्या करें.
हरियाणा में विभिन्न सरकारों द्वारा की जा रही इस अधिकारी की ‘प्रताड़ना’ पर आईएएस एसोसिएशन ने कभी ध्यान नहीं दिया. ध्यान दिया भी होगा तो, अपने साथी पर हो रहे अन्याय के खिलाफ लड़ने हिम्मत कभी आईएएस एसोसिएशन जुटा ही नहीं पाया.
…खैर प्रदीप कासनी अब रिटायर हो गये हैं. कासनी के मामले पर गौर करें तो सवाल उठते हैं कि जब प्रदीप कासनी जैसे वरिष्ठ आईएएस अधिकारी के साथ सरकारें इस तरह का मजाक करती है तो एसोसिएशनों का जमीर क्यों नहीं जागता है?
अपने इन्टरव्यू में कासनी नें कहा कि ‘अधिकारियों को प्रोटेक्ट करने के लिए जो बोर्ड बनाये गये हैं वो नेताओं की सहूलियत के हिसाब से काम करतें हैं.’
अन्य राज्यों में आईएएस और आईपीएस अधिकारियों के साथ नेताओं की बदसलूकी, प्रताड़ना और अपमान की घटनाओं को दुम दबाकर सह जाना और दिल्ली में शेर की तरह दहाड़ मारना बहुत कुछ कह जाता है.