नई दिल्ली: लखनऊ के डालीगंज में रहने वाले 67 वर्ष के कृष्णमोहन वर्मा मधुमक्खी पालन करते हैं. इसलिए लखनऊ और आसपास के जिलों के लोग इन्हें हनीमैन के नाम से जानते- पहचानते हैं. कृष्णमोहन वर्मा के मधुमक्खी पालन का उद्देश्य मात्र शहद प्राप्त करना ही नहीं है. उनके अन्य उद्देश्य भी हैं जैसे मधुमक्खियों को जीवनदान देना और पर्यावरण संरक्षण में योगदान देना. मधुमक्खियाँ मानव जीवन के लिए बहुत उपयोगी हैं, इसलिए खुद मधुमक्खी पालन करने के साथ-साथ वर्मा लोगों को इसके लिए प्रेरित करने का काम भी कर रहे हैं.
जब ‘हनीमैन’ से हमने मधुमक्खी पालन के लाभ के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि ‘मधुमक्खी पालन से पर्यावरण में सुधार आता है और कई फसलों के उत्पादन में डेढ़ से दोगुनी तक की वृद्धि भी हो सकती है. मधुमक्खियाँ शहद के अलावा कई और चीजें भी उत्पादित कर हमें देती हैं जिनका बड़ा उपयोग है, जैसे मोम और गोंद/प्रपोलिश. दोनों का कॉस्मेटिक्स इंडस्ट्री में काफी उपयोग होता है. मधुमक्खी गोंद भी बनाती है. इस गोंद से बालों के लिए तेल बनाया जाता है. जो असमय बालों का गिरना रोकने और गंजापन दूर करने में सहायक होता है.’
उन्होंने हमें बताया कि मधुमक्खियों का जहर इकठ्ठा करके लाखों रुपयें में सौ- सौ ग्राम बेचा जाता है. हालांकि वर्मा मधुमक्खियों का जहर इकठ्ठा नहीं करते. इसके पीछे की वजह वो, जहर इकट्ठा करने की मशीन का महंगा होना बताते हैं. वर्मा कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में मधुमक्खी पालन का सबसे उपयुक्त समय नवम्बर से लेकर मार्च के आखिरी तक का होता है. बाकी सीजन में में बॉक्स को ऐसे स्थानों पर रखा जाता है जहाँ पर उन्हें फूलों का पराग मिल सके. अप्रैल से लेकर अक्तूबर तक उनको जिन्दा रखने के लिए चीनी का घोल दिया जाता है लेकिन इस दौरान शहद नहीं निकाला जाता. इसके बाद उनके डिब्बों को ऐसे क्षेत्रों में स्थानांतरित कर दिया जाता है जहाँ बाजरा और मक्का अधिक होता है. वर्मा कहतें हैं कि प्रदेश के चंदौसी, संभल, मुरादाबाद, मेरठ, सहारनपुर, बरेली, अलीगढ़, आदि जगहों पर मधुमक्खी पालन होता है.
वर्मा कहते हैं कि एक बॉक्स में औसतन लगभग 25 किलो शहद एक साल में प्राप्त हो जाता है. एक साल में आठ से दस बार शहद निकलता है और हर बार उसकी मात्र दो से तीन किलो होती है. शहद उत्पादन में ये सीजन काफी कमजोर गया है. इनवायरमेंट चेंजिंग और कीटनाशकों का अत्यधिक प्रयोग होने से इस साल 10 किलो शहद भी उत्पादित नहीं हो पायी है.
पर्यावरण संरक्षण और मधुमक्खी पालन के लिए लोगों को प्रेरित करने के लिए कृष्णमोहन वर्मा अनोखी तरकीब अपनाते हैं.
कृष्णमोहन वर्मा कहते हैं कि जो लोग मधुमक्खी पालन में असमर्थ हैं, वो मधुमक्खी पालन के लिए प्रयोग होने वाला 4500 रूपये का विशेष बॉक्स या 4500 रूपये देकर उनसे प्रति वर्ष छः किलो शुद्ध प्राकृतिक शहद मुफ्त में ले जा सकते हैं. कोई चाहे तो एक -दो साल या फिर आजीवन के लिए मेम्बरशिप ले सकता है. जब तक कोई अपना बॉक्स हमसे वापस न ले ले तब तक हम शहद देना जारी रखेंगे. इसके लिए कोई भी उनसे संपर्क कर सकता है.
आपको बता दें कि मधुमक्खियां कृषि तथा बागवानी फसलों की महत्वपूर्ण परागक हैं. कुछ अध्ययनों के मुताबिक मधुमक्खियों द्वारा कीटरागी फसलों का परपरागण फसलों की उपज बढ़ाने की सर्वाधिक प्रभावी और सस्ती विधियों में से एक है. ऐसा अनुमान लगाया गया है कि मानव आहार का एक तिहाई भाग प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से मधुमक्खियों के परागण से ही प्राप्त होता है. मधुमक्खियां तथा पुष्पीय पौधे अपने अस्तित्व के लिए परस्पर एक-दूसरे पर निर्भर हैं.