चीनी मिलों पर अरबों की मेहरबानी, कर्ज का ब्याज भी चुका रही सरकार, आखिर इसकी वजह क्या है?

गन्ना किसानों को सीधे सहायता न देकर सरकार मिल मालिकों पर पैसे लुटा रही है, किसान संगठनों का कहना है कि मिलों से किसानों को नहीं मिलता लाभ  

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गन्ने की खेती
अजय कुमार 
नई दिल्ली. चीनी मिल मालिक लगातार कई साल से घाटे का रोना रो रहे हैं. लेकिन वो दूसरा कारोबार नहीं करते. क्या दो-दो दशक से घाटे में रहकर मिल या कोई भी बिजनेस चलाया जा सकता है? इस सवाल का जवाब ज्यादातर लोग ‘नहीं’ में देंगे. लेकिन चीनी मिलों में मलाई खाने के इतने रास्ते हैं कि ये मिल मालिक घाटे के बावजूद इस बिजनेस को चला रहे हैं. हैरानी की बात है न. दरअसल ऐसा इसलिए है क्योंकि चीनी मिल प्रबंधन पर हमेशा और हर सरकार की मेहरबानी बरसती रही है. इन पर किसानों के नाम पर इतना पैसा लुटाया जा रहा है कि सुनकर आप हैरान और परेशान हो जाएंगे.
किसानों के नाम पर चीनी मिलों को अरबों रुपये की सरकारी या यूं कहिए राज सहायता दी जा रही है लेकिन क्या उसका लाभ किसानों को मिलता है? यही बड़ा सवाल है. अगर ऐसा नहीं होता तो यह माना जाना चाहिए कि किसानों की मदद के नाम पर पैसे की बंदरबांट हो रही है.
राष्ट्रीय किसान महासंघ के संस्थापक सदस्य विनोद आनंद का साफ कहना है कि किसानों से संबंधित जो फायदे हैं उसे चीनी मिल वाले उठा रहे हैं. किसानों के नाम पर चीनी मिल लॉबी हर साल हजारों करोड़ रुपये का फायदा ले लेती है और जब किसानों का पैसा देना होता है तो घाटे का रोना रोते हैं. मैं पूछना चाहता हूं कि क्या कोई 20-20 साल से घाटे में रहकर बिजनेस चला सकता है? नहीं न, लेकिन ये लोग चलाते हैं, क्योंकि इनके खाने और दिखाने के दांत अलग-अलग हैं. ज्यादातर मिलों से कोई न कोई नेता जुड़ा हुआ है या मिल नेताओं की ही हैं इसलिए उन्हें सरकार हमारे आपके टैक्स का पैसा दे देती है.
हालांकि, उपभोक्ता मामलों के राज्य मंत्री रावसाहेब दादाराव दानवे ने कहा है कि ‘चीनी मिलों की नकदी की स्थिति में सुधार करने के लिए केंद्र सरकार ने कई कदम उठाए हैं, ताकि वे किसानों का गन्ना मूल्य बकाया चुकाने में समर्थ हों.’
कैसी-कैसी आर्थिक मदद
चीनी के बफर स्टॉक के रखरखाव से लेकर कंपनियों द्वारा लिए गए लोन का ब्याज तक सरकार चुका रही है. सब किसानों के नाम पर. लेकिन फायदा मिल रहा है मिलों को. पेराई किए गए गन्ने पर मिलों को सहायता मिल रही है लेकिन गन्ना किसानों को साल-साल भर से पेमेंट नहीं मिली है. पहले जानते हैं कि मिलों को मदद किस-किस तरह से दी गई है.
किसानों के नाम पर मिलों को क्या-क्या मिला
(1) 01 अगस्त 2019 से 31 जुलाई 2020 तक 40 लाख टन चीनी का बफर स्टॉक रखा जाएगा. सरकार इसके रखरखाव के लिए 1674 करोड़ रुपये की प्रतिपूर्ति (Reimbursement) यानी रिंबर्समेंट करेगी.
(2) 2019-20 में देश से 60 लाख टन चीनी के एक्सपोर्ट की सुविधा के लिए 10448 रुपये प्रति टन की दर पर चीनी मिलों को आर्थिक मदद दी गई है. जिसके लिए सरकार 6268 करोड़ रुपये का खर्च वहन करेगी.
(3) बैंकों के जरिए देश की 321 चीनी मिलों को 7402.29 करोड़ रुपए का सॉफ्ट लोन दिया गया. इस पर सरकार एक साल के लिए 7 फीसदी की दर से लगभग 518 करोड़ रुपए की ब्याज माफी खुद वहन करेगी.
(4) 2017-18 में चीनी के 30 लाख टन का बफर स्टॉक तैयार किया गया. जिसके लिए सरकार 780 करोड़ रुपए की रखरखाव लागत प्रतिपूर्ति (Reimbursement) की गई.
(5) 2018-19 के दौरान चीनी निर्यात को सुविधाजनक बनाने के लिए ढुलाई, मालभाड़ा, हैंडलिंग एवं अन्य मामलों से संबंधित खर्च का भुगतान करने के लिए चीनी मिलों को लगभग 700 करोड़ रुपए की आर्थिक मदद दी गई.
(6) 430 करोड़ रुपए की गन्ना लागत की भरपाई करने को 2017-18 के दौरान चीनी मिलों को पेराई किए गए गन्ने पर 5.50 रुपए प्रति क्विंटल की दर से वित्तीय सहायता दी गई है.
(7) 2018-19 में गन्ने की लगभग 3000 करोड़ रुपए लागत की भरपाई करने के लिए चीनी मिलों को पेराई किए गए गन्ने पर 13.88 रुपए प्रति क्विंटल की दर से वित्तीय सहायता दी जा रही है.
पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री ने क्या कहा?
पूर्व केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री सोमपाल शास्त्री का कहना है कि ‘सरकार के अधिकांश कदम मिल मालिकों के हित में हैं न कि किसानों के. किसानों के नाम पर चीनी मिल कंपनियों को जो पैसा दिया जा रहा है उसका लाभ किसानों को नहीं मिल रहा. चार साल से गन्ने का दाम नहीं बढ़ा है. साल-साल भर उनकी पेमेंट नहीं हो रही. इसकी बड़ी वजह किसी हद तक खुद गन्ना किसान भी हैं जो मरते रहते हैं लेकिन अपनी समस्या को लेकर आवाज नहीं उठाते. आंदोलन नहीं करते.’

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