नई दिल्ली. कोविड- 19 के संक्रमण को रोकने के लिए इन दिनों देश भर में लॉकडाउन लागू है. लॉकडाउन की वजह से मजदूरों के पास नौकरी और रहने के लिए ठिकाना नहीं है. इस वजह से बड़ी संख्या में मजदूर हजारों किमी दूर अपने गांवों की ओर जा रहे हैं. कोई पैदल है, कोई साइकिल चलाकर जा रहा है तो कोई ट्रक पर बैठकर अपने गांव जा रहा है. इस दौरान कई मजदूर घर पहुंचने से पहले ही रास्ते में दुर्घटना का शिकार हो गए.
इस मुद्दे पर आज सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इन्हें जाने से रोकना संभव नहीं है. जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस संजय कौल की पीठ ने कहा, ‘आप ऐसे लोगों को कैसे रोक सकते हैं जो पैदल चलना चाहते हैं. क्या कोई उन्हें रोक सकता है. किसी के लिए उन्हें रोकना संभव नहीं है.’
प्रवासी मजदूरों को रोकने के सवाल पर केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, “सबके घर लौटने की व्यवस्था की जा रही है. लेकिन लोग सब्र से अपनी बारी की प्रतीक्षा नहीं कर रहे. हम उनके साथ जबरदस्ती नहीं कर सकते.” उन्होंने ये भी कहा कि सरकार उनसे पैदल न चलने का सिर्फ अनुरोध कर सकती है.
पैदल चलने वालों पर कैसे नजर रखे?
केस दायर करने वाले वकील अलख आलोक श्रीवास्तव ने सुप्रीम कोर्ट में औरंगाबाद में ट्रेन से कटकर मजदूरों की मौत का मामला उठाया. उन्होंन कहा कि इस घटना में 16 प्रवासी मजदूरों की मौत हो गई. इसके जवाब में सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘कोई कैसे इन्हें रेलवे ट्रैक पर सोने से मना कर सकता है. कोर्ट ने ये भी कहा कि ये संभव नहीं है कि पैदल चलने वाले मजदूरों को कोर्ट नजर रखे.’
कोर्ट ने याचिकाकर्ता को कहा कि उनकी ये सारी रिपोर्ट न्यूजपेपर की क्लिपिंग पर आधारित है. आप ऐसे में कैसे उम्मीद करते हैं कि कोर्ट इस तरह का आदेश पारित करेगा, इस मामले में सरकारों को काम करने दिया जाए और एक्शन लेने दिया जाए. कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि लोग सड़क पर जा रहे हैं. पैदल चल रहे हैं. नहीं रुक रहे तो हम क्या सहयोग कर सकते हैं?