NEW DELHI: अगर आपकी मार्कशीट में जन्मतिथि या नाम में मामूली गलती है तो नौकरी के लिए चयन में ये गलती बाधा नहीं बनेगी. सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले पर अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि अनजाने या भूलवश हुई इस गलती की इतनी बड़ी सजा नहीं दी जा सकती है. न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल और यूयू ललित की पीठ ने एक छात्र अजय कुमार मिश्र का राष्ट्रीय रक्षा अकादमी में चयन करने का आदेश दिया है. यह छात्र एनडीए की लिखित, साक्षात्कार और मेडिकल परीक्षा में सफल हो गया था लेकिन उसके जन्मतिथि में गलती होने की वजह से उसका चयन नहीं किया जा सका था. यूपीएससी ने उसके चयन को यह कहते हुए निरस्त कर दिया था की उसने आवेदनपत्र में जन्मतिथि गलत लिखी है.
सुप्रीम कोर्ट की इस पीठ ने पाया कि एडमिट कार्ड डाउनलोड करते समय अभ्यर्थी ने अपनी जन्मतिथि 11 जुलाई 1998 दी थी जबकि उसकी वास्तविक जन्मतिथि 10 जुलाई 1998 कोर्ट नें पाया कि दोव्न्लोद करते समय ही अभ्यर्थी को अपनी न्गालती का एहसास हो गया था जिसके बाद उसने सम्बंधित अथारिटी को इस मामले से अवगत करा दिया था. यूपीएससी ने उसे जन्मतिथि सुधारने की इजाजत नहीं दी और उसके चयन पर रोक लग गई.
सुप्रीम कोर्ट ने अभ्यर्थी की ओर से पेश वकीलों की इस दलील को स्वीकार किया कि छोटी-छोटी गलतियों के लिए अभ्यर्थियों के चयन को रोका नहीं जा सकता. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यूपीएससी को भूलवश हुई ऐसी गलतियों को गंभीरता से नहीं लेना चाहिये. वह भी तब जब इस गलती से अभ्यर्थी को कोई फायदा न पहुच रहा हो.
सुप्रीम कोर्ट से पहले दिल्ली हाईकोर्ट ने भी उसके चयन का रास्ता साफ करनें का आदेश यूपीएससी को दिया था. दिल्ली हाईकोर्ट नें कहा था कि जब छात्र चयन के लिए दी गई अन्य सभी प्रक्रियाओं में सफल रहा है तो उसके गलती की गंभीरता को देखना जरुरी है भूलवश हुई इस मामूली गलती के लिए इतनी बड़ी सजा देना ठीक नहीं है.
इस पर यूपीएससी ने कहा कि अगर इस तरह की इजाजत दी गई तो याचिकाओं की बाढ़ आ जाएगी. जवाब में सुप्रीम कोर्ट की इस पीठ ने कहा कि हमें ऐसे आवेदनों पर विचार करने में कोई परेशानी नहीं है.