AJAY KUMAR
NEW DELHI: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव का मैदान अब शांत हो चुका है. समर्थक अपने- अपने दल की सरकार बनने की उम्मीद लगाये बैठे हैं. एक तरफ भाजपा के नेताओं को लगता है कि बहुमत भाजपा को ही मिलेगा तो दूसरी तरफ अखिलेश और राहुल गाँधी हैं जिन्हें लगता है कि उनका गठबंधन लगभग तीन सौ सीटें जीत रहा है तो बसपा सुप्रीमो मायावती भी बहुमत मिलने के दावे कर रही हैं.किसको कितनी सीटें मिलेंगी ये तो आगामी 11 मार्च को ही फ़ाइनल हो पायेगा. इस समय हर पार्टी के समर्थक इसी सोच में हैं कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो क्या होगा अगर कोई पार्टी बहुमत के आकड़ें तक नहीं पहुचेगी तो क्या होगा? राजनीति संभावनाओ का खेल है इसमें सत्ता पाने के लिए दो धुर विरोधी दल कब हाथ मिलकर एक साथ हो जाएं कुछ कहा नहीं जा सकता है.
भाजपा के सामने क्या होगा विकल्प :
भाजपा को अगर उसकी उम्मीद के अनुसार सीटें नहीं मिलती हैं तो भाजपा के सामने सबसे बड़ा विकल्प रालोद के साथ मिल कर सरकार बनाने का होगा क्योंकि सपा और कांग्रेस के साथ भाजपा के जाने की संभावना नजर नहीं आ रही है. अगर बात भाजपा और बसपा के एक साथ मिलकर सरकार बनाने की करें तो ऐसा संभव हो सकता है लेकिन मुख्यमंत्री पद को लेकर दोनों दलों में पेच फंस सकता है. भाजपा पहले ही कुछ छोटे दलों से गठबंधन करके चुनाव लड़ी थी बहुमत के आंकड़ों से पीछे रहने पर कुछ अन्य छोटे दलों और निर्दलीय विधायकों को भी अपने साथ लाने की कोशिश कर सकती है. भाजपा बाबू सिंह कुशवाहा के जन अधिकार पार्टी और निषाद पार्टी के साथ भी जा सकती है.
बसपा के लिए विकल्प :
अगर बसपा को बहुमत नहीं मिलता है तो बसपा भी रालोद के साथ जा सकती है. अगर बसपा बहुमत के आंकड़े से थोडा पीछे रह जाती है तो बसपा के सामने भी छोटे दलों के साथ जाकर सरकार बनाने के अवसर उपलब्ध रहेंगे. बसपा निषाद पार्टी और पीस पार्टी के साथ जाकर सरकार बना सकती है. सपा- कांग्रेस और बसपा का एक साथ जाकर सरकार बनाने की संभावना कम ही दिख रही है ये जरुर है कि भाजपा को रोकने के लिए बसपा को कांग्रेस अपना समर्थन दे दे. वैसे उत्तर प्रदेश के राजनैतिक गलियारों में बसपा और भाजपा के एक साथ जाकर सरकार बनाने की चर्चा जोरों पर है.
सपा-कांग्रेस के के विकल्प :
समाजवादी पार्टी और कांग्रेस पहले ही गठबंधन करके चुनाव मैदान में हैं, पहले इस गठबंधन में चौधरी अजीत सिंह के रालोद के भी शामिल होने की चर्चा चली थी लेकिन आखिरी वक्त पर बात बिगड़ गयी.
अगर सपा- कांग्रेस का गठबंधन बहुमत से पीछे रह जाता है तो उसे एक बार फिर अजीत चौधरी को मनाना पड़ेगा. सपा और कांग्रेस के भाजपा या बसपा के साथ जाने की सम्भावना कम ही है. ऐसे में सपा और कांग्रेस के पास दूसरे विकल्प के तौर पर निर्दलीय विधायकों के साथ ही पीस पार्टी, निषाद पार्टी और जन अधिकार मंच मौजूद रह सकतें हैं.