नई दिल्ली: भारत में गाय की कई नस्लें पाई जाती हैं, जिनके द्वारा छोटे किसान और पशुपालक अपनी जीविका चलाते हैं. इनमें साहीवाल गाय को भी महत्वपूर्ण स्थान है. पशुपालकों और किसानों के लिए यह गाय पालना बहुत फायदेमंद है. इसका पालन करके अच्छा मुनाफ़ा कमाया जा सकता है. माना जाता है कि ये गाय पाकिस्तान के साहीवाल जिले से उत्पन्न हुई है. हालांकि भारत के कई राज्यों के किसान और पशुपालन इस नस्ल की गाय को बहुत उपयुक्त मानते हैं.
साहीवाल गाय की पहचान और विशेषताएं-
इस गाय की विशेषता है कि इसका गहरा शरीर, ढीली चमड़ी, छोटा सिर और छोटे सींग होते हैं. इसका शरीर लंबा और मांसल होता है, साथ ही इसकी टांगें छोटी और पूंछ पतली होती है.
इसके बाल काफी चिकने दिखाई देते हैं. ये अधिकतर लाल और गहरे भूरे रंग की होती हैं. इस गाय की चमड़ी ढीली होती है, इसलिए इन्हें लोला गाय भी कहा जाता है.
इस गाय का शरीर गर्मी, परजीवी और किलनी प्रतिरोधी होता है. इन गाय का पालन कहीं भी आसानी से किया जा सकता है, क्योंकि यह स्वभाव में भी अच्छी होती हैं.
इनको मुख्यत: उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, बिहार और मध्यप्रदेश में पाया जाता है. इनकी प्रजनन की अवधि में 15 महीने का अंतराल होता है.
अगर नर साहिवाल की बात करें, तो इनके पीठ पर बड़ा कूबड़ होता है, जिनकी ऊंचाई 136 सेमी से ज्यादा होती है. इसके अलावा मादा साहीवाल की ऊंचाई लगभग 120 सेमी के आस-पास होती है.
जानकारी के लिए बता दें कि नर गाय का वजन 450 से 500 किलो का हो सकता है और मादा गाय का वजन 300 से 400 किलो तक का होता है.
साहीवाल गाय का दूध उत्पादन
साहीवाल गाय में 10 से 20 लीटर तक दूध देने की क्षमता होती है. एक जानकारी के अनुसार यह अपने एक दुग्धकाल के दौरान औसतन 2270 से 3500 लीटर तक दूध दे सकती है. साहीवाल गाय के दूध में वसा की पर्याप्त मात्रा पाई जाती है. हालांकि विदेशी गायों की तुलना में ये दूध थोड़ा कम देती हैं, लेकिन इनका पालन कम लागत में ही किया जा सकता है. विदेशी गायों की अपेक्षा इनके बीमार होने की संभावना की कम होती है. साहीवाल गाय 20 -30 हजार से शुरू होकर 80-90 हजार तक में आसानी से मिल जाती है.
आधुनिक समय में देसी गाय की संख्या कम होती जा रही है, इसलिए वैज्ञानिक ब्रीडिंग के जरिए देसी गाय की नस्लों में सुधार करके उन्हें साहीवाल में बदलने पर जोर दे रहे हैं.