नई दिल्ली। कोरोना काल में जब सरकारें लोगों की मदद कर रही थीं तब कुछ निजी स्कूल अपना बिजनेस चमकाने में जुटे हुए थे। लॉकडाउन शुरू में केवल तीन-तीन महीने की फीस जमा करने का नोटिस भेजा जाता है। जबकि पैरेंट्स इस टेंशन में थे कि जब काम धंधा बंद हो गया है तो फिर इनकी फीस कहां से दें। देश के शायद ही किसी हिस्से में किसी निजी स्कूल ने अभिभावकों पर फीस जमा करने का नोटिस न दिया हो।
सरकारें चेतावनी देती रहीं कि फीस न वसूली होगी लेकिन वे नहीं माने। मनमनी करते रहे जब इतनी बड़ी लॉबी का दबाव सरकारों पर पड़ा तो उन्होंने भी अपने सामने सरेंडर कर दिया। कुछ सरकारों ने रिवाइज आदेश भेजा कि फीस का कुछ हिस्सा देना होगा। अंत में सरकारें उनके सामने सरेंडर क्यों न करतीं। इनकी पार्टियों की रैलियों में इन स्कूलों की बसें जो काम में लाई जाती हैं। निजी स्कूलों के साथ भागों और लोगों के अपने कई हित जुड़े हुए हैं। तो कहानी ये हुई कि इन लोगों ने फीस वसूल ही ली है।
राष्ट्रपति अवार्डी सुनील कुमार सिंह का कहना है कि ऐसे स्कूल जो संकट काल में फीस को लेकर मनमानी की है उन्हें महामारी का माफिया कहना चाहिए। इन लोगों ने सरकार के आदेश के बावजूद अभिभावकों को परेशान किया है। ये स्कूल एक तरफ अपने स्टाफ को पूरा वेतन नहीं देते तो दूसरी ओर सरकार के आदेशों को ठेंगा दिखाते हुए अभिभावकों से ऐसे दौर में भी फीस वसूल रहे हैं। जबकि स्कूल बंद हैं।
सरकारी के आदेश की धज्जियां उड़ाते हुए निजी स्कूल
हरियाणा अभिभावक एकता मंच जैसे कुछ संगठनों ने इसका विरोध किया था लेकिन कोई विशेष परीक्षण नहीं हुआ। हरियाणा अभिभावक एकता मंच ने स्कूल प्रबंधन द्वारा अभिभावकों से सरकारी आदेशों की विपरीत ट्यूशन फीस व अन्य फंडों में वसूली गई अवैध फीस को वापस जमा करने की मांग की है। मंच ने कहा है कि शिक्षा विभाग का स्पष्ट आदेश है कि स्कूल प्रबंधक अभिभावकों से मासिक आधार पर उसी ट्यूशन फीस ले जो 2019 में थी. इसके अलावा अन्य किसी फंडों में पैसा ना लें लेकिन स्कूल छात्रों ने अभिभावकों को डरा धमका कर बढ़ी हुई ट्यूशन फीस व अन्य फंडों में अप्रैल, मई की फीस वसूल ली है। कई स्कूल के छात्रों ने ट्यूशन फीस में ही कई फंडों को मर्ज कर दिया है और उसी को ट्यूशन फीस बताकर फीस वसूल रहा है। ” जब अभिभावक ऐसी ट्यूशन फीस का ब्रेकअप मांग रहे हैं तो ब्रेकअप नहीं दिया जा रहा है।
स्कूलों का ऑडिट करवाने की मांग
मंच ने स्कूलों का सीएजी द्वारा ऑडिट कराने की मांग की है। मंच ने लिखा है कि स्कूलों के पास करोड़ों रुपए सरप्लस व रिजर्व फंड के रूप में मौजूद है। मंच ने मुख्यमंत्री को बताया है कि स्कूल प्रबंधकों ने नए दाखिलों में एडवांस में ली गई फीस से ही करोड़ों रुपये जमा कर लिए हैं। इसके अलावा दाखिला फार्म 500 से 1200 रुपए में बेचकर और 6 महीने पहले किए गए दाखिले में एडवांस के रूप में अभिभावकों से 30 हजार से 1,10,000 लेकर बैंक ब्याज के रूप में ही लाखों रुपए कमा लिए हैं।
मंच के प्रदेश महासचिव कैलाश शर्मा शिक्षा विभाग पंचकूला के एक सर्कुलर में कहा गया है कि सर्विस नहीं तो फीस नहीं। उसके बाद भी बिना पढ़ाए ही फीस वसूली जा रही है. स्कूल प्रबंधकों द्वारा बिना पढ़ाई फीस लेना वह भी 9 महीने पहले पूरी तरह से गैर कानूनी है। शिक्षा नियमावली में भी नियम है कि स्कूल प्रबंधक दाखिला देकर एडवांस में फीस नहीं ले सकते हैं।
मंच ने मुख्यमंत्री को यह भी बताया है कि सभी स्कूल शिक्षा ने शिक्षा विभाग के निर्देशों के विपरीत अभिभावकों से डरा धमका कर अप्रैल, मई की बढ़ाई गई ट्यूशन फीस और अन्य फंडों में फीस वसूल ली है। उसके बावजूद वे अपने अध्यापकों को मार्च, अप्रैल की तनखा नहीं दे रहे हैं।
पार्ट-2 में पढ़िए एक और महामारी माफिया की कहानी