NEW DELHI: बसपा प्रमुख मायावती का राज्यसभा कार्यकाल अगले साल अप्रैल में ख़त्म होने वाला है. ऐसे में उनका इस्तीफा देना कोई बड़ा त्याग नहीं होगा. उनका इस्तीफा सिर्फ अंगुली काटकर शहीद होने की कहावत जैसा ही होगा.
मायावती इस धमकी से यह दिखाना चाहती हैं कि वह दलितों की सबसे बड़ी हितैषी हैं. लेकिन उनका सवर्ण खासकर ब्राहमण प्रेम किसी से छिपा नहीं है. उन्हें दोबारा राज्यसभा में जाने के लिए 37 विधायकों के समर्थन की जरूरत होगी, लेकिन इस समय उनके मात्र 19 विधायक चुन कर आये हैं. ऐसे में उनका यह त्याग क्या दलितों को रिझा पायेगा, यह तो समय ही बताएगा.
ये है पूरा मामला:
बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती ने राज्यसभा से इस्तीफा देने की धमकी दी है. मायावती ने राज्यसभा से वॉकआउट करते हुए धमकी दी है कि अगर उन्हें बोलने का मौका नहीं दिया गया तो वो सदस्यता से इस्तीफा दे देंगी.
मायावती राज्यसभा में उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में जातीय हिंसा और कई जगहों पर दलितों और अल्पसंख्यकों के खिलाफ हुए अत्याचार का मुद्दा उठाना चाह रही थीं. मायावती का आरोप है कि उन्हें बोलने का पर्याप्त समय नहीं दिया गया.
राज्यसभा में मायावती यूपी के सहारनपुर में दलितों के खिलाफ हुए अत्याचार के मुद्दे पर अपनी बात रख रही थी. वो करीब तीन मिनट बोल चुकी थी जिसके उपसभापति ने उन्हें अपनी बात रोकने को कहा, लेकिन मायावती बोलने के लिए और वक़्त दिए जाने पर अड़ी रही, लेकिन उपसभापति ने उन्हें मौका नहीं दिया. इसके बाद वो काफी गुस्से में आ गईं और राज्यसभा से इस्तीफे की धमकी दे डाली.
मायावती इसके बाद सदन से वाकआउट कर गयीं और बाहर आकर मीडिया से कहा कि ‘अगर मुझे बोलने का मौका नहीं दिया गया तो मेरे इस सदन में रहने का कोई मतलब नहीं है. मुझे राज्यसभा में रहने का कोई शौक नहीं है. मैं लोकसभा चुनाव जीतकर लोकसभा की भी सदस्य रह चुकी हूँ और उत्तर प्रदेश विधान परिषद् की भी सदस्य रह चुकी हूँ’
मायावती के सदन से निकलने के बाद विपक्षी पार्टियों ने मायावती के समर्थन में नारे लगाए और सदन की कार्यवाही को बाधित किया. सीपीएम नेता सीताराम येचुरी ने कहा, ”मायावती ने जो मुद्दा उठाया है वो वैध और गंभीर हैं. ये सरकार दलित अत्यार के खिलाफ कुछ भी नहीं कर रही है. दलित और अल्पसंख्यक गंभीर खतरे में हैं.”