बिहार में ‘बेसहारों’ के ‘आर्थिक सहारा’ बने पप्पू यादव!

जब बात सियासत का लाभ लेने की होती है तो सारे राजनीतिक दल और नेता अपनी टोली लेकर दौड़ा- दौड़ी शुरू कर देते हैं. गरीबों का हितैषी बनने का नाटक भी शुरू कर देते हैं.

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PAPPU YADAV , PHOTO: FACEBOOK

पटना: बिहार में राजनीति का मिजाज क्या होता है यह जानने के लिए आपको बहुत दूर जाने की जरूरत नहीं है, आप बेगूसराय और दरभंगा के मामलों से उसका अंदाजा लगा सकते हैं. दोनों जगह हालात और परिस्थितियां लगभग एक जैसी ही हैं. बेगूसराय के राम पुकार तीन दिनों तक दिल्ली की सड़कों पर भटकते रहे. मीडिया की नजरों में आए, खबरें छपी तो जैसे-तैसे वह बिहार पहुंचे. लेकिन बिहार पहुँच कर भी अपने मरे हुए बेटे का मुंह नहीं देख पाए. जब वहां पहुंचे तो उन्हें तुरंत क्वारंटीन सेंटर में डाल दिया गया. कुछ सामाजिक संगठनों और जन अधिकार पार्टी के अध्यक्ष पप्पू यादव को छोड़ दें तो किसी नें उनकी कोई मदद की नहीं की. हालाँकि विपक्ष के नेता ने रामपुकार की तस्वीर को अपने सोशल मीडिया अकाउंट की डीपी अवश्य बना लिया.

इसी तरह दरभंगा की ज्योति अपने विकलांग पिता को साइकिल पर बैठा कर गुड़गांव से दरभंगा तक पहुंची. दरभंगा पहुंचने के बाद इस मामले को खूब मीडिया कवरेज मिली लेकिन ज्योति के लिए सबसे आवश्यक था कि उसे मदद दी जाए. उसकी मदद के लिए भी कोई आगे नहीं आया. कहते हैं न कि गरीबों का कोई जमात नहीं होती, उनका कोई अपना नहीं होता, उनसे किसी को कोई सरोकार नहीं होता.

लेकिन बिहार में एक नेता हैं. जिनका हर वक्त गरीबों और जरुरतमंदों से सरोकार रहता है. वो नेता हैं पप्पू यादव. वही पप्पू यादव जिनकी छवि इस समय बिहार के जननेता की के रूप में बनी हुई है. जो लॉकडाउन के दौरान लगातार गरीबों और जरुरतमंदों को हर तरीके से मदद पहुंचा रहे हैं.

मामले की जानकारी होने के बाद इनकी आर्थिक मदद के लिए आगे आये पप्पू यादव. पप्पू यादव ने अपने पार्टी के जिलाध्यक्ष को उनके घर भेजकर 20 हज़ार रुपया तत्काल आर्थिक मदद दिलवाया और आगे भी आर्थिक मदद देने का भरोसा दिलाया.

जब बात सियासत का लाभ लेने की होती है तो सारे राजनीतिक दल और नेता अपनी टोली लेकर दौड़ा- दौड़ी शुरू कर देते हैं. गरीबों का हितैषी बनने का नाटक भी शुरू कर देते हैं.

थोड़े ही दिनों में देखने को मिलेगा भी. इंतजार बस तीन-चार महीने का ही है. बड़े से बड़े वादों और दावों के साथ लोग मैदान में होंगे. लेकिन बिहार की जनता यह देख रही है कि गरीबों का संरक्षक कौन है. सिर्फ बड़ी-बड़ी बातें करने और मीडिया में सुर्खियां बटोरने से कोई गरीबों का संरक्षक नहीं होता. उसके लिए जमीन पर काम करना होता है. और जनता के सुख दुःख का हिस्सा बनकर जमीन पर काम कौन कर रहा है यह बिहार की जनता देख रही है.

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