Faridabad: लोधी राजपूत जनकल्याण समिति फरीदाबाद द्वारा प्रथम स्वाधीनता संग्राम की अग्रणी प्रणेयता अमर शहीद वीरांगना महारानी अवंती बाई लोधी का बलिदान दिवस एनआईटी फरीदाबाद में मनाया गया. कार्यक्रम की अध्यक्षता भगवान दास लोधी ने की.
इस अवसर पर मुख्य अतिथि माननीय ममता चौधरी पार्षद व विशिष्ट अतिथि के रूप में विश्व हिन्दू परिषद के मनोज शर्मा, सतपाल चौधरी भाजपा नेता, शंकर लाल आर्य, मोहर सिंह लोधी, मंगल सिंह भारतीय आदि उपस्थित थे. मंच संचालन लाखन सिंह लोधी व योगेन्द्र राजपूत ने किया.
लोधी राजपूत कल्याण समिति के संस्थापक लाखन सिंह लोधी ने बताया अमर शहीद वीरांगना महारानी अवंतीबाई लोधी का जन्म मध्यप्रदेश के जबलपुर और शिवमी जिलों की सीमा पर स्थित मनकेड़ी के जमींदार राव जुझार सिंह लोधी के यहाँ 16 अगस्त 1831 ई. को हुआ था. अवंतीबाई का विवाह रामगढ़ के राजा विक्रमादित्य के साथ हुआ. इनके दो पुत्र अमान सिंह और शेर सिंह हुए. रानी ने अंग्रेजों से एकजुट होकर संग्राम करने के लिए क्रांति का संदेश जमीदारों, मालगुजारों, मुखियों को निम्न प्रकार पत्र भेजे. कागज का टुकड़ा और सादा कांच की चूडी भिजवाई. कागज पर लिखा था देश की रक्षा करो या चूड़ी पहनकर घर में बैठो. तुम्हें धर्म-ईमान की सौगंध रानी ने डिंडोरी नगर की सीमा पर खैरीगंज में अपना मोर्चा जमाया. अंग्रेजी सेना और क्रांतिकारियों में भयंकर युद्ध हुआ. रानी ने मण्डला नगर का घेरा डाल दिया.
श्री लोधी ने कहा कि 20 मार्च 1858 को सामने से कैप्टन वाडिंगटन, दायें से लैफ्टिनेंट वार्टन, बायें से लैफ्टिनेंट कॉकबर्न और पीछे से रीवा नरेश की सेना ने धाबा बोल दिया. घमासान युद्ध हुआ बड़ी संख्या में सैनिक हताहत हुए. अचानक रानी के बायें हाथ में गोली लगी. बन्दूक हाथ से छूटकर गिर गई. रानी के शोर्य, पराक्रम और रण कौशल पर प्रकाश डालते हुए अंग्रेज अफसर एफआरआर रैडमैन आईसीएस ने सन् 1912 मण्डला गजेटियर में लिखा है कि रामगढ़ की रानी ने रानी दुर्गावती का अनुकरण करते हुए स्वयं तलवार पेट में भोंक ली जिससे वह पकड़ी न जाए. अचेतावस्था में वाडिंग के कहने पर हिन्दू सिपाही श्रृद्धापूर्वक अस्पताल ले गये उनका उपचार हुआ. रानी को कुछ चेतना हुई. कैप्टन वाडिंगटन ने झुककर सलाम किया और पूछा आपको कुछ कहना है. रानी ने कहा क्रांति की जिम्मेदार मैं स्वयं हूँ मैने ही लोगों को उकसाया था वे निर्दोष हैं उन्हें दण्ड न दिया जाए. कैप्टन वाडिंगटन ने रानी की बात मान ली, रानी को संतोष हुआ उन्होंने अपने नेत्र बन्द कर लिए और शीघ्र ही चिरनिन्द्रा में लीन हो गई. वो 20 मार्च 1858 को वीरगति को प्राप्त हुई. मरकर भी अमर हो गई. आओ हम सब मिलकर 20 मार्च बलिदान दिवस पर श्रृद्धासुमन अर्पित करें.
इस अवसर पर रूप सिंह लोधी, पूर्ण सिंह लोधी, सूरजपाल सिंह लोधी, नरेन्द्र सिंह, ओमप्रकाश, नंद किशोर, रामसेवक, दिग्विजय, बिजेन्द्र शास्त्री, प्रेमपाल सिंह, विजयपाल सिंह, फते सिंह, महेन्द्र सिंह लोधी, संजीव कुमार, महेश बघैल, भूदेवी, आशा राजपूत, राम प्यारी लोधी, भूदेव सिंह, डा. मोहर सिंह, महीपाल सिंह, ओमकार सिंह, भूप सिंह सहित अन्य जनसमूह ने श्रृद्धासुमन अर्पित कर श्रृद्धाजंलि अर्पित की.