उत्तर प्रदेश के सिसवा सीट पर 55 वर्षों से चला आ रहा है इस्टेट बनाम एन्टी इस्टेट की जंग. इसकी वजह से 17 वीं विधानसभा चुनाव में काफी रोमांचक मुकाबले के आसार हैं. इस्टेट के यादवेन्द्र सिंह उर्फ लल्लन बाबू 1962 से 1977 तक लगातार विधायक रहे. इस्टेट ने पहली बार 1977 में शिकस्त खायी थी. जब इमरजेंसी के बाद लोकनायक जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से बही जनता लहर में जनता पार्टी जनसंघ घटक के शारदा प्रसाद जायसवाल ने इस्टेट के कांग्रेस उम्मीदवार यादवेन्द्र सिंह को मामूली 896 वोट के अन्तर से हराया था.
सिसवा इस्टेट क्षेत्र भाजपा का गढ़ माना जाता है. 1980 का चुनाव जीतने वाले यादवेन्द्र सिंह 5 सितम्बर से 14 दिसम्बर 1982 तक विधानसभा के डिप्टी स्पीकर भी रहे. उनके निधन के बाद 1983 में हुये उपचुनाव में सहानुभूति की लहर के साथ उनके पुत्र शिवेन्द्र सिंह कांग्रेस ई से पहली बार विधायक चुने गये थे. फिर 1985 के चुनाव में शिवेन्द्र सिंह दूसरी बार विधायक बने. अलबत्ता 1989 के चुनाव में बोफोर्स काण्ड की बौछार में एन्टी इस्टेट मतों के विभाजन को रोकते हुये जनता दल के जगदीश लाल ने शिवेन्द्र सिंह को 8742 वोटों से हराया था. सन 1991 में पुनः हुये मध्यावधि चुनाव में पूरे प्रदेश में रामलहर थी। तब भाजपा के उदयभान मल्ल को कांग्रेस ई के शिवेन्द्र सिंह ने 9013 मतों से हरा कर सीट पर फिर से कब्ज़ा कर लिया.
प्रदेश की राजनीति में जल्द ही 1993 का चुनाव हुआ. इस बार भाजपा ने अपने पुराने सिपहसलार शारदा प्रसाद जायसवाल को मैदान में उतारा और सीट को शिवेन्द्र सिंह से 7614 मतों से हराकर छीन लिया. 1996 के चुनाव में भाजपा ने जहाँ नये चेहरे केदार पटेल को मैदान में उतारा. वहीं कांग्रेस की सूख चुकी ज़मीन को भांप पर शिवेन्द्र सिंह ने बसपा के हाथी की सवारी कर ली. तब राजनितिक पाला बदलने से एक बार फिर बाज़ी शिवेन्द्र सिंह के पक्ष में गयी. उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वन्दी केदार पटेल को 19295 मतों से पराजित किया. शिवेन्द्र सिंह प्रदेश सरकार में 2002 तक राज्यमंत्री भी रहे. वर्ष 2002 में शिवेन्द्र सिंह ने एक बार फिर राजनितिक पाला बदलकर भाजपा से टिकट पा लिया. वर्षों से इस्टेट विरोधी रहे यहाँ के भाजपाइयों ने दलगत निष्ठा में दिल से लगकर उन्हें एक बार फिर जिता दिया.
शिवेन्द्र सिंह ने 2007 में भाजपा का साथ छोड़ सपा के साईकिल की सवारी कर ली, तो 2002 में साईकिल चला चुके अवनीन्द्रनाथ द्विवेदी उर्फ़ महंथ दूबे को भाजपा ने गले लगा लिया. राजनितिक अदला बदली में दो बार से हार रहे महंथ दूबे के प्रति लोगों की सहानुभूति जुट गयी. भाजपा के परम्परागत वोटों की बदौलत वह विधायक चुन लिये गये. दूबे ने इस चुनाव में शिवेन्द्र सिंह को 7371 वोटों से शिकस्त दिया. वर्ष 2012 में भाजपा ने अपने सीटिंग एमएलए महंथ दूबे का टिकट काटकर संगठन से जुड़े नेता डॉ0 रमापति राम को चुनाव मैदान में उतारा. परन्तु एक बार फिर सपा उम्मीदवार शिवेन्द्र सिंह ने रमापति राम को 16842 मतों से पराजित कर पुनः सीट पर काबिज़ हुये. इस बार फिर से शिवेन्द्र सिंह सपा के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं. अब देखना यह है कि इस्टेट और एन्टी इस्टेट की जंग इस बार कौन सा गुल खिलाता है. इस्टेट के प्रति लोगों की आस्था अभी भी कायम है है.