चीन और अमेरीका के बाद भारत का तीसरा स्‍थान

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New Delhi: उत्‍तराखंड जल विद्युत निगम एवं आईआईटी रूड़की के सहयोग से केन्‍द्रीय जल आयोग द्वारा आयोजित तृतीय राष्‍ट्रीय बांध सुरक्षा सम्‍मेलन का रूडकी में समापन हुआ. इस सम्‍मेलन में बांध सुरक्षा के क्षेत्र में प्रमुख चुनौतियों पर ध्‍यान केन्द्रित किया गया.

अपने देश में बांधों ने कृषि तथा ग्रामीण प्रगति व विकास को बढ़ावा देने में प्रमुख भूमिका निभाई है, जोकि आजादी के बाद से भारत सरकार की प्राथमिकताओं में रही है. पिछले 70 वर्षों के दौरान भारत ने खाद्य, ऊर्जा एवं जल सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए जलाशयों में पानी का भंडारण करने के लिए कार्य किया है. लगभग 283 बिलियन क्‍यूबिक मीटर की भंडारण क्षमता के साथ बड़े बांधों की संख्‍या के लिहाज से दुनिया में चीन और अमरीका के बाद भारत का तीसरा स्‍थान है. लगभग 80 प्रतिशत बड़े बांधों ने 25 वर्ष की उम्र पार कर ली है और उनमें से कई के सामने अब रख-रखाव की चुनौती खड़ी हो गई है. इनमें से कई बांध बेहद पुराने हैं (लगभग 170 बांधों की उम्र 100 वर्ष से अधिक है) और उनका निर्माण ऐसे समय में हुआ था, जिनके डिजाइन प्रचलन एवं सुरक्षा संबंधी विचार वर्तमान डिजाइन मानकों एवं मौजूदा सुरक्षा नियमों के अनुरूप नहीं हैं.

इस सम्‍मेलन में 400 से अधिक शिष्‍टमंडलों ने भाग लिया तथा देश के भीतर और देश के बाहर के विशेषज्ञों के 70 से अधिक तकनीकी शोध पत्र प्रस्‍तुत किया गया. लगभग 40 राष्‍ट्रीय एवं विदेशी संगठनों ने सम्‍मेलन स्‍थल पर आयोजित प्रदर्शनी के जरिए अपने उत्‍पादों एवं सेवाओं को प्रदर्शित किया. इस समारोह में अमरीका, ऑस्‍ट्रेलिया, जापान, ब्रिटेन, फ्रांस, इटली, स्‍पेन, नीदरलैंड तथा जर्मनी के पेशेवर व्‍यक्तियों ने हिस्‍सा लिया.
सम्‍मेलन का उद्घाटन भारत सरकार के जल संसाधन, नदी विकास मंत्रालय में सचिव डॉ. अमरजीत सिंह, उत्‍तराखंड सरकार के मुख्‍य सचिव एस. रामस्‍वामी, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय के महानिदेशक यू.पी. सिंह, आईआईटी रुड़की के निदेशक प्रो. अजित कुमार चतुर्वेदी और केन्‍द्र व राज्‍य सरकार व डीआरआईपी शुरू करने वाले अधिकारियों की उपस्थिति में किया गया.
संगठनों द्वारा अपना-अपना उत्‍पाद पेश किया गया ताकि बांधों की बेहतर निगरानी, संचालन एवं रख-रखाव तथा पुनर्वास के लिए कार्य किया जा सके. सम्‍मेलन के लिए प्राप्‍त चुने हुए शोध पत्रों को बांधों के डिजाइन, निर्माण, परिचालन एवं रख-रखाव के लिए जिम्‍मेदार राज्‍य एजेंसियों के पुस्‍तकालयों में एक स्‍थायी संदर्भ उपलब्‍ध कराने के लिए एक सार संग्रह के रूप में प्रकाशित किया जाएगा.
बांधों के रखरखाव में क्या है समस्या

देश के पुराने बांधों की देख-रेख में कठिनाइयां उत्‍पन्‍न हो रही हैं. इनकी सुरक्षा पर तत्‍काल ध्‍यान दिये जाने की आवश्‍यकता है. बड़े बांधों के टूटने से जान, माल एवं पर्यावरण का भरी नुकसान हो सकता है. इसके महत्‍व को महसूस करते हुए जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय ने 2012 में विश्‍व बैंक की सहायता से 6 वर्षींय बांध सुरक्षा पुनर्वास एवं सुधार परियोजना (डीआरआईपी) की शुरूआत की. इसमें संस्‍थागत सुधारों एवं सुरक्षित तथा वित्‍तीय रूप से टिकाऊ बांध परिचालनों से संबंधित नियमों के साथ भारत के 7 राज्‍यों में 225 बड़ी बांध में व्‍यापक सुधार करने का प्रावधान किया गया है. इस परियोजना पर 7 राज्‍यों (झारखंड, कर्नाटक, केरल, मध्‍य प्रदेश, ओडिशा, तमिलनाडु एवं उत्‍तराखंड) काम किया जा रहा है.
यह परियोजना पांच प्रतिशत बड़े बांधों एवं 7 राज्‍यों से ही संबंधित है, कई राज्‍यों में वार्षिक समारोह के रूप में बांध सुरक्षा क्षेत्रों में ज्ञान एवं अनुभव को साझा करने के लिए गैर-डीआरआईपी राज्‍यों के पेशेवर व्‍यक्तियों, शिक्षाविदों, उद्योगों तथा वैश्विक विशेषज्ञों के साथ राष्‍ट्रीय बांध सुरक्षा सम्‍मेलनों (एनडीएससी) का आयोजन किया जा रहा है.

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